UP को लेकर बीजेपी में ‘चेक एंड बैलेंस’ पर माथा-पच्ची
देश के सबसे बड़े सियासी दल भाजपा में इस वक्त राज्य के अध्यक्षों के चुनाव की प्रक्रिया चल रही है. इसके बाद राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव होना है. राज्यों में पार्टी 22 संगठनात्मक प्रमुखों का चुनाव कर चुकी

देश के सबसे बड़े सियासी दल भाजपा में इस वक्त राज्य के अध्यक्षों के चुनाव की प्रक्रिया चल रही है. इसके बाद राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव होना है. राज्यों में पार्टी 22 संगठनात्मक प्रमुखों का चुनाव कर चुकी है. लिहाजा राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव के लिए एक आवश्यक औपचारिकता भी पूरी हो गई है. अब राष्ट्रीय अध्यक्ष और कुछ बचे हुए राज्यों में प्रदेश अध्यक्ष भी का चुनाव होना है. लेकिन, सबसे ज़्यादा चर्चा में है यूपी प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव. पिछले ग्यारह साल से देश में भाजपा की जो राजनीतिक हैसियत बनी हुई है उसके पीछे यूपी है.
यूपी से पीएम कैंडिडेट को चुनाव लड़ाने की रणनीति कारगर साबित हुई और पूरे देश में बीजेपी का परचम लहराने लगा. मगर, दस साल बाद अब उसी यूपी में बीजेपी को चुनौती मिल रही है. पिछले साल हुए लोकसभा चुनाव के परिणाम ने बीजेपी को चिंता में डाल दिया है. पार्टी दूसरे नंबर पर खिसक गई है और इसी चिंता की वजह से यूपी में प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव से ज़्यादा कठिन दिख रहा है.
मामला सिर्फ प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव तक सीमित नहीं
यूपी में अगर बीजेपी को सिर्फ प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव कराना होता तो कोई मुश्किल नहीं थी. यहां पार्टी के लिए सबसे बड़ी चुनौती है सरकार और संगठन के बीच ‘चेक एंड बैलेंस’ बैठाने की. वरिष्ठ पत्रकार संतोष भारतीय कहते हैं कि यूपी में बीजेपी को जाति-वर्ग और क्षेत्र तो देखना ही है लेकिन उससे कहीं ज़्यादा महत्वपूर्ण है सरकार और संगठन के बीच का संतुलन बनाए रखना. प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव में इस बात का ख़्याल रखना कि संगठन को सरकार से कमजोर नहीं होना चाहिए.
इसके अलावा ये तथ्य भी महत्वपूर्ण है कि बीजेपी को 2027 में सीएम योगी की जरूरत पड़ेगी. दिल्ली और लखनऊ को लेकर चाहे जो बातें चल रही हों लेकिन हकीकत यही है कि अगर 2027 में बीजेपी को यूपी में वापसी करनी है तो योगी आदित्यनाथ को साथ लेकर चलना ही होगा. अब ये दिल्ली को तय करना है कि वो ये संतुलन कैसे बैठाएंगे.
संतोष भारतीय की ये बात इस दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है कि प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति से ये संदेश बिल्कुल ना जाए कि यूपी में चुनाव हारने का ठीकरा किसी व्यक्ति या समूह पर फोड़ा जाए. ये जरूरी है कि प्रदेश अध्यक्ष ऐसा हो जो जाति-वर्ग और क्षेत्र में एक संतुलन स्थापित करे. साथ ही इतना मजबूत भी हो कि उसकी नियुक्ति से ये संदेश जाए कि यूपी में सरकार को खुली छूट नहीं होगी. सरकार को संगठन के साथ संतुलन बैठाकर चलना होगा.
यूपी हाथ से निकला तो कहानी खत्म होते देर नहीं लगेगी
वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र कुमार कहते हैं, प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव के साथ-साथ कैबिनेट में फेरबदल, आयोग और बोर्डों में अध्यक्ष और सदस्य भी तय करने हैं. करीब 30% जिलों में अध्यक्ष तय होने हैं. ये इतना आसान नहीं होगा. लोकसभा चुनाव के परिणाम ने ये साबित कर दिया है कि यूपी में अध्यक्ष और सीएम की जोड़ी फेल रही. जो भी इज्जत बची वो पीएम मोदी की साख की वजह से बची.
भूपेंद्र चौधरी को जिस जाटलैंड में जनाधार बढ़ाने के लिए लाया गया, वहां पार्टी आज भी जयंत चौधरी के भरोसे है. भूपेंद्र खुद अपने क्षेत्र में चुनाव नहीं जीत पाए. तो ये सारी बातें महत्वपूर्ण हैं और फैसला इन्हीं बिंदुओं के इर्द-गिर्द ही होना है. बीजेपी को पता है कि यूपी हाथ से निकला तो कहानी खत्म होते देर नहीं लगेगी. इसलिए पार्टी के लिए जो भी बेहतर हो सकता है, उसपर मंथन चल रहा है. उत्तर प्रदेश में कई संदर्भों पर बदलाव संभव हैं.
राजेंद्र कुमार कहते हैं, ये भी जरूरी नहीं है कि यूपी में अध्यक्ष राष्ट्रीय अध्यक्ष के पहले आ जाएगा. हां इस बात की संभावना जरूर है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष जिस जाति का होगा यूपी अध्यक्ष उसके ठीक अलग जाति समूह से होगा.
यूपी से जनाधार खिसका तो सत्ता हो गई दूर की कौड़ी
वरिष्ठ पत्रकार अखिलेश वाजपेयी का कहना है, सीटों के लिहाज से यूपी देश का सबसे बड़ा राज्य है, जहां चुनौतियां और अपेक्षाएं दूसरे राज्यों के मुकाबले कहीं अधिक हैं. संगठन बड़ा है तो सामंजस्य में भी कठिनाई आती है लेकिन यूपी को लेकर चाहे वो राजनीतिक पंडित हो या विश्लेषक या कोई भी राजनीतिक दल सभी इस बात पर एक मत हैं कि अगर यूपी से जनाधार खिसका तो सत्ता दूर की कौड़ी बन जाती है.
यूपी से कांग्रेस की विदाई होने के बाद से आज तक कांग्रेस की गाड़ी पटरी पर नहीं आ सकी. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को यूपी में हार मिली तो उनको सत्ता गंवाना पड़ी. 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी उत्तर प्रदेश में कमजोर हुई तो 2014 के बाद पहली बार मोदी सरकार बहुमत से दूर हो गई. जेडीयू और टीडीपी के समर्थन से सरकार बनी. उत्तर प्रदेश में बीजेपी का निराशाजनक प्रदर्शन इसका बड़ा कारण रहा. बीजेपी ने सिर्फ 33 सीटें जीती. 2019 के लोकसभा चुनाव में यूपी में 62 सीटों पर चुनाव जीता था और पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने में दोबारा सफल रही थी.
यूपी और केंद्र दोनों जगह रिशफल भी चैलेंजिंग है
तो यूपी की पॉलिटिकल क्रेडिबिलिटी कहीं से भी प्रभावित न हो बीजेपी इसको लेकर भी कई पहलुओं पर विचार कर रही है. बीजेपी भी अब केंद्रीकरण की राह पर है तो इसकी अलग चुनौती है. कहने को अध्यक्ष का चुनाव होना है लेकिन ये एक तरह का सिलेक्शन ही होगा. यूपी और केंद्र दोनों जगह रिशफल होना है ये भी बीजेपी के लिए चैलेंजिंग है. नॉन परफॉर्मर को एकदम से डंप तो कर नहीं पाएंगे तो उनका क्या होगा? बाहर से आए नेताओं का समायोजन कैसे करेंगे? अपने कैडर के लोगों को कहां भेजेंगे किसको प्रतिनिधित्व देना है? ऐसे कई सवाल हैं जिसका उत्तर खोजना बीजेपी के लिए आसान नहीं होगा.
बीजेपी महामंत्री विनोद तावड़े भले यूपी में आकर और बैठकों के जरिए फीडबैक लेकर गए हों या यूपी में संगठन चुनाव के लिए पीयूष गोयल को नियुक्त किया गया है. ये सारी बातें अपनी जगह हैं लेकिन मूल मु
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