राज्यपाल ने ममता सरकार के अपराजिता विधेयक को लौटाया, TMC ने किया विरोध
पश्चिम बंगाल के राज्यपाल आनंद बोस ने ममता बनर्जी सरकार द्वारा पेश किए गए "अपराजिता विधेयक" को राज्य सरकार को वापस भेज दिया है। राज्यपाल ने इस विधेयक में

What's Your Reaction?







News Desk Jun 3, 2025 0 24
News Desk Apr 14, 2023 0 129
Join our subscribers list to get the latest news, updates and special offers directly in your inbox
पश्चिम बंगाल के राज्यपाल आनंद बोस ने ममता बनर्जी सरकार द्वारा पेश किए गए "अपराजिता विधेयक" को राज्य सरकार को वापस भेज दिया है। राज्यपाल ने इस विधेयक में किए गए कुछ प्रावधानों पर आपत्ति जताते हुए कहा कि इसमें दुष्कर्म जैसे अपराधों के लिए बहुत सख्त सजा का प्रावधान किया गया है। इस बिल को 6 सितंबर 2024 को राष्ट्रपति के पास भेजा गया था, हालांकि राज्यपाल ने उस समय भी विधेयक में कई खामियों का उल्लेख किया था।
राजभवन के सूत्रों के मुताबिक, केंद्र सरकार ने अपराजिता विधेयक पर गंभीर आपत्तियां जताई हैं। केंद्र का कहना है कि यह विधेयक भारतीय न्याय संहिता (IPC) की कई धाराओं में बदलाव करता है, जिससे भारतीय न्याय व्यवस्था में असमानता पैदा हो सकती है। विशेष रूप से दुष्कर्म और अन्य गंभीर अपराधों में बहुत सख्त सजा का प्रावधान चिंता का विषय बन गया है।
राज्यपाल ने 9 अगस्त 2024 को कोलकाता के आरजी कर अस्पताल में एक ट्रेनी डॉक्टर से हुए रेप और मर्डर के बाद ममता सरकार पर महिला सुरक्षा को लेकर सवाल उठाए थे। इसी संदर्भ में, ममता सरकार ने 3 सितंबर 2024 को पश्चिम बंगाल विधानसभा में एंटी-रेप विधेयक प्रस्तुत किया था।
पश्चिम बंगाल सरकार ने अपराजिता विधेयक का नाम "अपराजिता वुमन एंड चाइल्ड बिल 2024" रखा है। इस विधेयक का मुख्य उद्देश्य राज्य के आपराधिक कानूनों में संशोधन करना है, ताकि महिलाओं और बच्चों के खिलाफ होने वाले अपराधों में सजा की व्यवस्था को और अधिक कठोर बनाया जा सके। विधेयक का लक्ष्य दुष्कर्म, गैंगरेप, यौन शोषण और एसिड अटैक जैसी घटनाओं के खिलाफ सख्त प्रावधानों के जरिए न्याय व्यवस्था को मजबूत करना है।
राज्यपाल आनंद बोस ने विधेयक के तीन प्रमुख प्रावधानों पर आपत्ति जताई है:
रेप मामलों में फांसी या उम्रकैद: विधेयक के अनुसार, यदि किसी दुष्कर्म के मामले में पीड़िता की मृत्यु हो जाती है या वह कोमा में चली जाती है, तो अपराधी को अनिवार्य रूप से फांसी की सजा दी जाएगी। इसके साथ ही, गंभीर मामलों में उम्रभर की सजा का प्रावधान भी किया गया है।
12 और 16 साल की पीड़िता में भेद: विधेयक में प्रस्तावित किया गया था कि 12 और 16 साल की पीड़िता के मामलों में अलग-अलग कानूनी प्रावधान होंगे। राज्यपाल ने इसे "अन्यायपूर्ण" और "विवादास्पद" करार दिया है, क्योंकि इससे न्याय का संतुलन बिगड़ सकता है।
पीड़िता की मौत या कोमा में जाने पर अनिवार्य फांसी: राज्यपाल ने इस प्रावधान पर भी आपत्ति जताई है, क्योंकि यह एकतरफा निर्णय हो सकता है और न्यायिक स्वतंत्रता को प्रभावित कर सकता है।
अपराजिता विधेयक में दुष्कर्म, गैंगरेप, यौन शोषण और एसिड अटैक जैसे गंभीर अपराधों के लिए कड़ी सजा का प्रावधान है। बिल के अनुसार, अगर दुष्कर्म के बाद पीड़िता की मौत हो जाती है या वह कोमा में चली जाती है, तो अपराधी को तुरंत फांसी की सजा दी जाएगी। इसके अतिरिक्त, बिल में यह भी कहा गया है कि रेपिस्ट को उम्रभर की सजा दी जाएगी और उसे पैरोल या सजा माफी नहीं मिलेगी।
विधेयक में यह भी प्रावधान है कि रेप और गैंगरेप की जांच 21 दिनों के अंदर पूरी की जाए, और अगर किसी कारणवश समय सीमा बढ़ानी पड़े, तो पुलिस अधिकारियों को इस पर लिखित कारण देना होगा।
विधेयक में आदतन अपराधियों के लिए भी कड़ी सजा का प्रावधान किया गया है। इसके अनुसार, यदि कोई व्यक्ति लगातार रेप, गैंगरेप या अन्य गंभीर अपराध करता है, तो उसे उम्रभर की सजा दी जाएगी और जुर्माना भी लगाया जाएगा। विधेयक में यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया गया है कि अपराधी को जीवन भर जेल में रखा जाए और उसे जमानत या पैरोल की सुविधा ना मिले।
विधेयक के अनुसार, रेप और यौन शोषण के मामलों की त्वरित जांच और न्याय सुनिश्चित करने के लिए स्पेशल टास्क फोर्स और स्पेशल कोर्ट का गठन किया जाएगा। इन टास्क फोर्स की जिम्मेदारी होगी कि वे महिलाओं और बच्चों के खिलाफ होने वाले अपराधों की जल्द जांच करें और पीड़ितों को जल्द न्याय दिलवाएं।
इसके साथ ही, विधेयक में यह भी प्रस्तावित किया गया है कि इस प्रकार के मामलों में विशेष जांच टीमों को प्रशिक्षित किया जाए ताकि वे पीड़ितों के मानसिक तनाव को कम करने में मदद कर सकें और मामले की निष्पक्ष जांच कर सकें।
विधेयक को राज्यपाल के पास भेजा गया था, जहां से उसे राष्ट्रपति के पास भेजे जाने का प्रस्ताव है। यह इसलिए जरूरी है क्योंकि भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची के तहत आपराधिक कानून समवर्ती सूची में आता है। इसका मतलब है कि राज्य और केंद्र दोनों इस पर कानून बना सकते हैं, लेकिन अगर दोनों के बीच टकराव हो तो केंद्र का कानून ही सर्वोपरि होगा।
तृणमूल कांग्रेस (TMC) ने राज्यपाल के इस कदम का विरोध किया है और इसे राज्य सरकार के अधिकारों का उल्लंघन करार दिया है। पार्टी ने कहा कि इस विधेयक का उद्देश्य महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा को बढ़ावा देना था, और राज्यपाल का इसे लौटाना निंदनीय है। TMC ने आरोप लगाया कि राज्यपाल राजनीति कर रहे हैं और इस मुद्दे का राजनीतिकरण कर रहे हैं।
राज्यपाल की आपत्ति के बाद अब यह देखना होगा कि पश्चिम बंगाल सरकार इस विधेयक में किस प्रकार के संशोधन करती है और क्या यह विधेयक अंततः केंद्र से मंजूरी प्राप्त कर पाता है। महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा को लेकर इस विधेयक में किए गए प्रावधान निश्चित रूप से महत्वपूर्ण हैं, लेकिन इसके कानूनी और न्यायिक पहलुओं पर गहरी चर्चा की आवश्यकता है।
News Desk Feb 26, 2023 0 412
Dheer Singh Yadav Apr 13, 2025 0 365
Suhani singh Jun 14, 2024 0 289
Chandan Das Aug 12, 2024 0 280
Dheer Singh Yadav May 15, 2025 0 261
Ritu Singh Chauhan Mar 10, 2025 0 55
Ritu Singh Chauhan Mar 10, 2025 0 58
Ritu Singh Chauhan Mar 10, 2025 0 55
Ritu Singh Chauhan Mar 10, 2025 0 45
Ritu Singh Chauhan Mar 10, 2025 0 50
Total Vote: 10
अखिलेश यादव