भाजपा सांसद निशिकांत दुबे का बड़ा बयान, कहा – मोदी नहीं होते तो भाजपा का जनाधार नहीं बनता
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ सांसद निशिकांत दुबे ने एक साक्षात्कार में चौंकाने वाला बयान दिया है। उन्होंने साफ कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बिना भाजपा को देश

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ सांसद निशिकांत दुबे ने एक साक्षात्कार में चौंकाने वाला बयान दिया है। उन्होंने साफ कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बिना भाजपा को देश में 150 सीटें भी मिलना मुश्किल हो जाएगा। दुबे के इस बयान ने राजनीतिक गलियारों में नई चर्चा को जन्म दे दिया है, जिसमें भाजपा के भीतर मोदी पर बढ़ती निर्भरता और संघ से दूरी के संकेत देखे जा रहे हैं।
दुबे का कबूलनामा
गोड्डा से भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने एक अखिल भारतीय चैनल से बातचीत करते हुए कहा, "2014 के बाद नरेंद्र मोदी ने भाजपा के लिए ऐसा वोट बैंक बनाया जो पहले पार्टी के साथ नहीं था। विशेष रूप से गरीब वर्ग और वंचित तबके के लोगों का समर्थन मोदी के कारण भाजपा को मिला है।" उन्होंने यह भी जोड़ा कि इन वर्गों का भाजपा पर नहीं, मोदी पर भरोसा है, और यही कारण है कि मोदी लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बने।
"भाजपा को मोदी की जरूरत है"
दुबे ने बातचीत में यह भी स्पष्ट किया कि मोदी अब किसी पार्टी के नेता मात्र नहीं हैं, बल्कि वे एक ऐसे राष्ट्रीय प्रतीक बन चुके हैं, जिन पर करोड़ों लोगों का भरोसा टिका है। उन्होंने कहा, "मोदी को चुनाव जीतने के लिए भाजपा की ज़रूरत नहीं है, लेकिन भाजपा को जनता का समर्थन पाने के लिए मोदी की ज़रूरत है।"
दुबे का समर्थन
अपने बयान को और आगे बढ़ाते हुए निशिकांत दुबे ने कहा, "मैं व्यक्तिगत रूप से अगली दो दशकों तक मोदी को ही भाजपा का नेतृत्व करते हुए देखता हूँ।" इस बयान के ज़रिए उन्होंने यह संकेत दिया कि मोदी की राजनीतिक यात्रा अभी लंबी है, और उन्हें रिटायरमेंट से जोड़ने की बातें महज अफवाहें हैं।
क्या दुबे का बयान आरएसएस को दिया गया इशारा है?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि निशिकांत दुबे का यह बयान केवल मोदी की तारीफ नहीं, बल्कि आरएसएस को एक परोक्ष संदेश भी हो सकता है। संघ के कुछ वर्गों में यह धारणा बन रही है कि भाजपा अब बहुत अधिक मोदी-निर्भर हो गई है, जिससे संगठन की पारंपरिक भूमिका कमजोर हुई है। दुबे के शब्दों को इस संदर्भ में संघ के भीतर चल रहे असंतोष पर प्रतिक्रिया के रूप में देखा जा रहा है।
संघ की ओर से '75 वर्ष की सीमा' पर चल रही अटकलें फिर चर्चा में
संघ और भाजपा के संबंधों पर चर्चा के दौरान यह मुद्दा फिर उभरा कि आरएसएस की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 75 वर्ष की उम्र में सक्रिय राजनीति से हटने के लिए संकेत दिया जा सकता है। हालाँकि भाजपा ने बार-बार इस बात को अफवाह बताया है, लेकिन संघ प्रमुख मोहन भागवत की हालिया टिप्पणी ने अटकलों को फिर हवा दी है। उन्होंने एक कार्यक्रम में कहा, "जब कोई 75 साल की उम्र में आपको उत्साहपूर्वक बधाई देने आए, तो समझ लीजिए कि अब रुकना है।"
संघ के भीतर भी मतभेद
आरएसएस के कुछ वर्गों का मानना है कि पिछले एक दशक में भाजपा की सफलता पूरी तरह मोदी के करिश्मे पर आधारित रही है। इससे संगठन की भूमिका सीमित हो गई है। ऐसे में संघ यह चाहता है कि पार्टी में संस्थागत संतुलन फिर से स्थापित हो। परंतु भाजपा के भीतर अभी भी मोदी को सर्वोच्च नेता के रूप में देखा जा रहा है, और पार्टी की सभी सफलताओं का श्रेय उन्हें ही दिया जा रहा है।
निशिकांत दुबे के बयान से संघ को सीधी चुनौती
निशिकांत दुबे का बयान न केवल मोदी के प्रति भक्ति भाव को दर्शाता है, बल्कि यह भी इंगित करता है कि पार्टी के भीतर मोदी के बिना भाजपा की कल्पना करना मुश्किल है। उनके इस वक्तव्य को संघ परिवार के लिए सीधी चेतावनी माना जा रहा है कि मोदी को दरकिनार करने की कोशिशें पार्टी के लिए राजनीतिक आत्मघात साबित हो सकती हैं।
निशिकांत दुबे के इस बयान ने भाजपा और संघ के संबंधों में चल रही अंदरूनी खींचतान को उजागर कर दिया है। एक ओर भाजपा मोदी को अडिग नेता मान रही है, वहीं संघ का एक धड़ा उनके प्रभाव को सीमित करना चाहता है। आने वाले समय में यह स्पष्ट होगा कि पार्टी और संगठन के बीच की यह रस्साकशी किस दिशा में जाती है – लेकिन फिलहाल, भाजपा में मोदी का वर्चस्व अक्षुण्ण और अपराजेय नजर आ रहा है।
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